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Writer's pictureBenjamin Scholz

नीतिअनुशंसा: स्कूल अनुदान राशि की भुलभुलैया: कैसे सुनिश्चित हो पारदर्शिता, जवाबदेही और शिकायत निवारण


हमारी पहली नीति अनुशंसा में, हम एक महत्वपूर्ण विषय का विश्लेषण करने जा रहे हैं: पैसा।

सरकारी स्कूल नई केंद्रीय योजना समग्र शिक्षा अभियान (SMSA) के अंतर्गत वार्षिक रूप से मिश्रित विद्यालय अनुदान देने का प्रावधान हैं। नए अनुदान की राशि विद्यालय में नामांकन संख्या पर निर्भर करती है।जिसकी कुल अनुदान राशि 25 हज़ार से 1 लाख रुपये तक प्रति विद्यालय होगी।


हालांकि,सर्व शिक्षा अभियान के क्रियान्वयन के पिछले अनुभव हमें बताते है की अनुदान के आवंटन में अक्सर विलंब,अविश्वसनीयता और अपारदर्शिता संबंधी समस्या विद्यमान रही हैं। इसके अलावा, स्कूल प्रबंधन समितियों के संबंध में कई मुद्दे हैं जो कि विद्यालय प्रबंधन और पर्यवेक्षण के लिए जिम्मेदार हैं।


हमारी यह अनुशंसा मुख्यतः प्रौद्योगिकी और जनभागीदारी पर निर्भर करती है जिससे विद्यालय अनुदान के व्यय का वास्तविक समय में सामाजिक अंकेक्षण की अनुमति मिलती है। इससे भ्रष्टाचार में कमी और पारदर्शिता में वृद्धि होगी।

अब तक, स्कूलों में धन का प्रवाह अक्सर अस्पष्ट और अनियमित थे। विभिन्न अध्ययनों ने प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी पाया है। जिसमें 'पैसा स्टिडीज' मुख्य है।अक्सर, यह लोगों के संज्ञान में नहीं होता कि विद्यालय को अनुमोदित धनराशि धनप्रवाहक इकाइयों में कहाँ पर है,आयेंगे भी या नहीं और यदि हाँ तो कब?


धन के वित्तीय वर्षों के आखिरी हफ्तों में विद्यालय में स्थानांतरित होने के परिणामस्वरूप अक्सर व्यय का उपयोगता प्रमाण पत्र जमा करने के लिए दीवारों की सफेदी कराने में अपव्यय किया जाता है। धन के स्थानांतरण और उपयोग में अनियमितताओं और लंबे समयांतराल के कारण नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा असंतोषजनक समीक्षा के रूप में सामने आता है। इन कारणों से विद्यालय के प्रधानाध्यापक और प्रबंधन समिति धन आवंटन और स्थानांतरण की अनिश्चितता और देरी के कारण विकाससंबंधी कोई पूर्वयोजना नहीं बना पाते। जो विद्यालय को सुचारू रूप से चलाने की असुरक्षा में योगदान देती है।


विद्यालयों के भवनों की मरम्मती और शिक्षण अधिगम सामग्री(TLM) खरीदने के लिए धन की अतिआवश्यकता बावजूद हर साल राज्य स्तर पर परियोजना की एक बड़ी राशि अप्रयुक्त रह जाती रही है।

बिहार की स्कूल प्रणाली पृथक्कृत है। सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चें बहुतायत समाज के वंचित व शोषित तबके से आते है,ज्यादातर पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी है। उनके माता-पिता, जो बड़ी तादाद में विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य भी होते है, अधिकांशतः अशिक्षित होते हैं जिसके कारण वे अपने अधिकारों सहित उनकी भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूप और दृढ़ नहीं होते। इन सदस्यों की प्रशिक्षण लगातार अनियमित और अप्रभावी बनी रही है। इसका कारण प्रशासनिक तंत्र का जमीनी स्तर पर योजना बनाने की अवधारणा से अनभिज्ञ रहना है। निचले स्तर के नौकरशाहों में निर्णयन क्षमता की कमी और सामान्य उदासीनता माता-पिता को अपने बच्चों के स्कूल प्रबंधन में कार्रवाई करने के लिए हतोत्साहित करता है।


दुष्क्रियात्मकता और भ्रष्ट प्रथाओं के इस संतुलन से बचने के लिए हमने एक तकनीक आधारित उपाय प्रस्तावित किया है जो देश-विदेश के विभिन्न बड़े पैमानों के अनुप्रयोग के अनुभवों पर आधारित है। सीमावर्ती नौकरशाहों की कम क्षमता और संरक्षण, ग्राहकवाद और भ्रष्टाचार की प्रणाली अक्सर अभिनव कार्यक्रमों को सही तरीके से लागू करने में बाधा उत्पन्न करती है। हमारा ध्यान नीतियों के वास्तविक क्रियान्वयन को सुगम बनाना है न की मूल नीति के ढाँचों की पुनर्व्याख्या। इसलिए, हम विद्यालयों को आवंटित धनराशि को मेस्ट्रिमिंग के तहत राज्य क्रियान्वयन इकाई से सीधे प्रबंधन समिति(SMC) के खाते में बिना जिला इकाई को सम्मिलित किये बिना स्थानांतरित करने का सुझाव देते हैं।ये पहल धनराशि के उपलब्धता में देरी और रिसावों को रोकने में मदद कर सकता है और साथ ही यह निचले स्तर के नौकरशाही को विद्यालय अनुदान के स्थानांतरण और व्यय संबंधी अतिरिक्त कार्यभारों से मुक्त करता है।विद्यालय को अनुमोदित मिश्रित धन बच्चों के नामांकन संख्या के अनुसार तय किया जाता है जो यू-डीआईएसई के माध्यम से सरकार के पास उपलब्ध हैं। इसलिए, फंड वितरण में जिला के लिए कोई अनिवार्य भूमिका नहीं है।



इसके अलावा, तकनीक का उपयोग स्मार्टफोन ऐप्स और वेबसाइटों से परे होना चाहिए जो एसएमसी सदस्यों के लिए पहुंच के बाहर है। इसके विपरीत, एसएमएस और कॉलिंग सुविधा वाले मोबाइल आमतौर पर आसानी से उपलब्ध होते हैं। नागरिकों द्वारा भागीदारी को सुगम बनाने के लिए, नियमित राज्य की प्रशासनिक हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में नागरिकों और राज्य के बीच सहयोग न्यूनतम स्तर पर पहुँच गया है। इस सहयोग के पुनर्निर्माण के लिए राज्य को आगे बढ़कर नागरिकों को उनके अधिकारों के बारे में लगातार सूचित करने की आवश्यकता है। साथ ही, सुलभ शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराया जाना चाहिए। साथ ही, इन तंत्रों को निराशा से बचने के लिए त्वरित रूप से उचित कार्रवाई करना चाहिए।


हमारा प्रस्ताव राज्य क्रियान्वयन सोसायटी (SIS) की एक इकाई द्वारा एसएमएस / टेक्स्ट-टू-वॉयस-कॉल द्वारा एसएमसी सदस्यों की मासिक जानकारी उपलब्ध कराना है। एसएमसी सदस्यों को विद्यालय को कुल आवंटित धनराशि, अब तक प्राप्त राशि और शेष बकाया धन की स्थिति के बारे में सूचित किया जाएगा। इसके अलावा, एसएमसी सदस्यों से एसएमएस / टेक्स्ट-टू-वॉयसकॉल द्वारा उपयोगीता प्रमाण पत्र को सत्यापित करने के लिए पूछा जाएगा। शिकायतें और अनियमितता संबंधित सूचना तुरंत उसी प्रणाली का उपयोग करके दायर किया जा सकता है जो पुनर्गठित एमआईएस के साथ जुड़ जाएगा।


वास्तविक समय में सामाजिक अंकेक्षण वाली इस व्यवस्था को प्रभाव में लाने के लिए व्यय की उपयोगिता की जानकारी देने और उसकी लेखा प्रविष्टि की वर्तमान प्रक्रिया को संशोधित किया जाना चाहिए। इसके लिए हम स्कूलों में मशीन द्वारा पढ़ी जा सकने वाली फार्म उपलब्ध कराने का सुझाव देते हैं। इन फॉर्मों को स्कूल द्वारा एक पेन के साथ भरा जा सकता है और बारकोडेड लिफाफे में पंजीकृत पोस्ट द्वारा एसआईएस इकाई को भेजा जा सकता है। व्यय के एक सप्ताह के भीतर उन्हें एसआईएस को भेजा जाएगा। एसआईएस इकाई स्वचालित रूप से सूचना को एमआईएस में स्कैन करके प्रविष्ट कर लेंगी। इस दृष्टिकोण से, एसएमसी सदस्यों के लिए लगभग वास्तविक समय की जानकारी सुनिश्चित की जा सकती है।




उपरोक्त निष्कर्ष निकालने के लिए हमने विषय संबंधी प्रासंगिक विभिन्न शोध पत्रों और पुस्तकों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया हैं। उनमें से थे:

  • Jha/Rani(Ed.) (2016): Right to Education in India. London: Routledge India.

  • Report of the Comptroller and Auditor General of India on Implementation of Right of Children to Free and Compulsory Education Act, 2009. Report 23 of 2017.

  • Mehrotra/Indrakumar/Saxena (2012): Management Information System (MIS) of Indian Government’s Flagship Programmes: Are they an adequate monitoring tool? IAMR Occasional Paper No. 5/2012.

  • Andrews/Pritchett/Woolcock (2017): Building State Capacity: Evidence, Analysis, Action. Oxford University Press.

  • Banerjee/Duflo/Imbert/Mathew/Pande (2017): E-Governance, Accountability, and Leakage in Public Programs: Experimental Evidence from a Financial Reform Management Reform in India. Working Paper, August 2017. J-PAL.

  • PAISA studies and various other papers by the Accountability Initiative/CPR.

  • Stocktaking Reports of the RTE Forum.

  • Kugelman/Husain (Ed.) (2018): Pakistan’s Institutions: We Know They Matter, But How Can They Work Better? The Wilson Center.

फलस्वरूप हम उक्त निष्कर्ष पर पहुंचे है। इसलिए हम इन सभी संगठनों और लेखकों के प्रति बहुत ऋणी हैं। आप हमारी नीति अनुशंसा की संपूर्ण प्रति का पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं। यहाँ क्लिक करकें।

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