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  • Writer's pictureBenjamin Scholz

लॉकडाउन 2.0: बच्चों की सुरक्षा हेतु बिहार को क्या ज़रूरी क़दम उठाने चाहिए


कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र बिहार शिक्षा नीति संस्थान (ईपीआईबी) ने एक त्वरित शोध टीम का गठन किया है जिसमें शामिल हमारे प्रोजेक्ट मैनेजर अभिषेक आनंद रांची से, दिल्ली स्थित डिजिटल फ़ेलो अनीषा जैन, बिहार से पूर्व प्रोजेक्ट मैनेजर व निवर्तमान डिजिटल फ़ेलो राकेश कुमार रजक और जर्मनी से हमारे सलाहकार परिषद के सदस्य मार्टिन हॉस निरंतर योगदान दे रहे हैं. हम ज़मीनी स्तर के साथ-साथ स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सरकारों से लेकर वैश्विक सलाहकार निकायों जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनेस्को, यूनिसेफ़ आदि के माध्यम से जानकारियाँ एकत्र कर रहे हैं. इसके उपरांत हमने बिहार के संदर्भ में प्रासंगिक जानकारियों को संकलित करने का लक्ष्य रखा है ताकि हम नीति निर्माताओं, नौकरशाहों, स्कूल नेतृत्व और आम लोगों को संकट की इस घड़ी में जब पल-पल चीज़ें बदल रहीं हैं आवश्यक सलाह दे सकें. हम भरोसेमंद स्रोतों से आप तक सटीक जानकारियाँ पहुँचाने की पूरी कोशिश करते हैं. यदि आपको कोई त्रुटि मिलती है, तो हमसे तुरंत संपर्क करें.



कोविड-19 संकट के कारण बच्चों की शिक्षा की अपूरणीय क्षति न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए बिहार को दो मोर्चों पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए.




1. सामान्य आय समर्थन और मध्याहन भोजन

जैसा कि नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन और अभिजीत बैनर्जी ने पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के साथ मिलकर इशारा किया है, बड़ी संख्या में परिवारों को पूर्ण ग़रीबी और भूखमरी का शिकार होने से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है. उच्च प्रशासनिक बोझ तले दबे हुए लक्षित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए अब कोई समय नहीं है. इसकी बज़ाए, कोई भी असहाय न छूटे यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है. उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के विस्तारण और बच्चों के घर तक मध्याहन भोजन का वितरण सुनिश्चित करने की अनुशंसा की है. हमने पहले ही बिहार सरकार से बच्चों के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की जगह सूखे राशन का प्रावधान करने का आग्रह किया था. निस्संदेह यह अग्रिम पंक्ति के नौकरशाहों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा, लेकिन बच्चे भूखे न रहें यह सुनिश्चित करना आवश्यक है. बंदी (लॉक डाउन) के दौरान दूर-दराज़ स्थित एटीएम से नक़दी निकालना क़तई व्यवहारिक नहीं है.



2. निम्न तकनीकी साधनों व ऑफ़लाइन समाधानों के ज़रिए शैक्षिक कार्यक्रम चलाना

 

फ़िलहाल अपने गाँव में रह रहे डिजिटल फ़ेलो राकेश कुमार रजक का कहना है,

मेरे टोला में कुल 50 घर हैं, जिनमें से सिर्फ़ दो के पास टेलीविज़न है.
 

हालांकि कई राज्य सरकारों ने डिजिटल शिक्षा सामग्री मुहैया कराने के लिए तरह-तरह के ऐप्स और टीवी कार्यक्रम शुरू किये हैं, लेकिन बिहार के अधिकाँश बच्चों तक इन चैनलों की पहुंच नहीं है. विभिन्न शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि स्कूल बंद होने से ग़रीब बच्चों को पढ़ाई-लिखाई का सबसे ज्यादा नुकसान होता है क्यूंकि बच्चे एक अंतराल के बाद चीज़ें भूलने लगते हैं. इसके उलट अमीर बच्चे डिजिटल साधनों का इस्तेमाल कर इस बड़ी क्षति से बच सकते हैं.


इस समय बिहार को पूरे राज्य के लिए पूर्णरूपेण रेडियो आधारित शिक्षा कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है. इस बात की भी प्रबल संभावना है कि जल्द ही स्कूल पूरी तरह से शुरू नहीं किए जा सकते क्यूंकि बिहार के सरकारी स्कूलों में निश्चित शारीरिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) के पालन हेतु आवश्यक बुनियादी ढांचे का घोर अभाव है. फिर, कक्षाओं में पहले से ही काफ़ी भीड़भाड़ है. इसलिए, सुचारू पढ़ाई-लिखाई और सीखने की निरंतरता बनाए रखने हेतु एक शिक्षा संजीवनी प्रदान करना नितांत आवश्यक है. साथ ही, इसके पूरक के तौर पर सर्वसुलभ सामूहिक एसएमएस सुविधाएं और आईवीआरएस (इंटरैक्टिव वॉयस रेस्पॉन्स सिस्टम) का भी प्रावधान किया जाना चाहिए. सौभाग्यवश, बिहार में मध्याहन भोजन की निगरानी के लिए दोपहर (आईवीआरएस) नाम से एक सटीक प्रणाली पहले से ही मौजूद है. इसी तरह की एक व्यवस्था का उपयोग छात्रों व अभिभावकों को सक्रिय रूप से कॉल कर उन्हें स्कूल से जोड़े रखने के लिए किया जा सकता है. साथ ही, इसके ज़रिए एक त्वरित सर्वे कर जिन बच्चों के पास रेडियो सुविधा नहीं है उसका भी पता लगाया जा सकता है. ऐसे बच्चों के लिए विशेष व्यवस्था करने के साथ-साथ उन्हें सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण मुहैया करवाए जाने चाहिए. इसके अलावा रेडियो कार्यक्रम में प्रसारित पाठ्य सामग्री से जुड़े वर्कशीट (उदाहरणतः मध्याहन भोजन के साथ) वितरित किए जाने चाहिए. कई अध्ययनों के अनुसार इस तरह के हस्तक्षेप प्रभावी साबित हुए हैं.



अब तक बिहार के अधिकांश बच्चे किसी भी तरह के शैक्षिक पहल/कार्यक्रमों से कटे हुए हैं. स्कूलों से लंबे समय तक दूर रहने की वजह से बहुत सारे बच्चों की दोबारा स्कूल वापसी न हो सके, इस असहज स्थिति से बचने के लिए तुरंत कार्रवाई करना अत्यंत महत्वपूर्ण है.

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